अध्याय-18 (प्रत्यय)
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जो शब्दांश शब्दों के अंत
में लगकर उनके अर्थ को बदल देते हैं वे प्रत्यय कहलाते हैं।
प्रत्यय
दो प्रकार के होते हैं-
1. कृत प्रत्यय।
जैसे-
राखन+हारा = राखनहारा, घट+इया = घटिया, लिख+आवट = लिखावट आदि।
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जिस प्रत्यय से बने शब्द
से कार्य करने वाले अर्थात कर्ता का बोध हो, वह कर्तृवाचक
कृदंत कहलाता है।
जैसे-
‘पढ़ना’। इस सामान्य क्रिया के साथ वाला
प्रत्यय लगाने से ‘पढ़नेवाला’ शब्द
बना।
® जिस
प्रत्यय से बने शब्द से किसी कर्म का बोध हो वह कर्मवाचक कृदंत कहलाता है।
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जिस प्रत्यय से बने शब्द
से क्रिया के साधन अर्थात करण का बोध हो वह करणवाचक कृदंत कहलाता है।
जैसे-
रेत में ई प्रत्यय लगाने से रेती बना।
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जिस प्रत्यय से बने शब्द
से भाव अर्थात् क्रिया के व्यापार का बोध हो वह भाववाचक कृदंत कहलाता है।
जैसे-
सजा में आवट प्रत्यय लगाने से सजावट बना।
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जिस प्रत्यय से बने शब्द
से क्रिया के होने का भाव प्रकट हो वह क्रियावाचक कृदंत कहलाता है।
जैसे- भागता हुआ, लिखता हुआ आदि।
जैसे-
अपना+पन = अपनापन, दानव+ता = दानवता आदि।
(क) कर्तृवाचक तद्धित-
जिससे किसी कार्य के करने वाले का बोध हो। जैसे- सुनार,
कहार आदि।
(ख) भाववाचक तद्धित- जिससे भाव व्यक्त
हो। जैसे- सर्राफा, बुढ़ापा, संगत, प्रभुता आदि।
(ग) संबंधवाचक तद्धित- जिससे संबंध का
बोध हो। जैसे- ससुराल, भतीजा, चचेरा आदि।
(घ) ऊनता (लघुता) वाचक तद्धित-
जिससे लघुता का बोध हो। जैसे- लुटिया।
(ड़) गणनावाचक तद्धति- जिससे संख्या का
बोध हो। जैसे- इकहरा, पहला, पाँचवाँ आदि।
(च) सादृश्यवाचक तद्धित- जिससे समता का बोध
हो। जैसे- सुनहरा।
(छ) गुणवाचक तद्धति- जिससे किसी गुण का
बोध हो। जैसे- भूख, विषैला, कुलवंत आदि।
(ज) स्थानवाचक तद्धति- जिससे स्थान का
बोध हो. जैसे- पंजाबी, जबलपुरिया, दिल्लीवाला आदि।
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